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सदा प्रेम का अधिक प्रसार करें-2 का भाग 1

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यह एक समस्या है जब हमारे में एक बहुत ज्यादा अहम हो। फिर हम चीजों को गलत करते है। हम बस उसे करना चाहते है जैसे भी हमें मुनाफा हो, या जिस प्रकार से हम सोचते है, और नहीं विचारते है किसी और को या कुछ और को, फिर हम गलत करते है। (जी हां।) बुद्धि का उपयोग करना चाहिए परन्तु अहम उसे पूरा धुंधला करता है। लोगों में भी बुद्धि होती है, यदि उन में अहम होता है, वे कम बुद्धिमान हो जाते है।

यदि अहंकार इतना अधिक है, तो स्तर बहुत कम है। वह निश्चित रूप से उस तरह है। यह एक अपवाद कभी नहीं कि आपके पास एक बहुत अहंकार है और फिर उच्च स्तर एक ही समय में। नहीं। मैंनें यह देखा है। मैंनें यह देखा है। यदि उनकी सकारात्मक शक्ति पहले से ही बहुत कम है और उनका अहंकार उच्च है, भले ही वे सकारात्मक है, लेकिन कम, सीमा की तरह, तो नकारात्मक शक्ति अभी भी उन्हें प्रभावित कर सकती है। हो सकता है कि 24 घण्टे नहीं, लेकिन जब भी वे चाहते है या जब भी अवसर पैदा होता है उनके अभ्यास में बाधा डालने के लिए।

लेकिन भले ही आपमें अहंकार है, आपको प्रार्थना करनी होगी, आप स्वर्ग को प्रार्थना करो, प्रार्थना करो सभी देवी और देवताओं को, आपके संरक्षक, गुरू जी की शक्ति को, ‘‘कृप्या मेरी मदद करे अहंकार को मिटाने में।’’ ‘‘कृपया मेरी मदद करें अधिक विनम्र, अधिक निरूस्वार्थ होने में।’’ इसलिए नहीं कि सम्भवत: उपर जाने के लिये, लेकिन यह अच्छी बात है निरूस्वार्थ होना और विनम्र होना। क्योंकि तब सब लोग आपको पसन्द करेंगें। और जब सब लोग आपको पसन्द करेंगें, उसका मतलब कि एक प्रसन्न वातावरण है। जब हमारे पास एक खुशी का माहौल है, सब कुछ आसानी से चलता है हर किसी के लिए। और उनके पास कोर्इ शूल नहीं है उनके दिल में आपकी उपस्थिति के कारण, आपके अधर्म के कारण, आपके कारण ताÆकक रवैये से, या क्योकि आपकी आक्रमक मानसिकता। इसलिए यह भी एक सेवा है मानवजाति के लिए और सभी प्राणियों के लिए यदि हम अधिक निरूस्वार्थ और निरहंकारी है।

मैं भी अपनी जांच करती हूं हर समय। मैं कहती हूं, ‘‘क्या मुझे में अभी भी अंहकार है?’’ मैं पूछती हूं। कभी कभी, मैं जांचती हूं सुनिश्चित करने के लिए। और मैं स्वर्ग को कहती हूं, ‘‘यदि मैं कभी भी नुक्सान करती हूं किसी के प्रति किसी भी चीज़ के द्वारा गलती से या नहीं, कृप्या उनके लिए क्षतिपूर्ति करना।’’ ‘‘इसे निकालो मेरे आध्यात्मिक गुणांक बैंक खाते से, और इसे उन्हें दे दो उनकी कमार्इ के अनुसार और अधिक उपर से।’’

हमें हमेशा विनम्रतापूर्वक, अतंर्मुखी खुद की जांच करनी होगी, क्या यह वास्तव में अंहकार द्वारा है या नहीं। बेशक, कभी कभी यह कर्म द्वारा होते है और वे सब। लेकिन अंहकार भी एक बहुत बुरी चीज़ है आसपास होना, सबके लिए बुरा, ना सिर्फ आपके लिए। यह वास्तव में एक बाधा है आपकी आध्यात्मिक प्रगति में और पैर में एक कांटा चारों और बाकी सबके लिए। यह बहुत नुक्सान करता है, मुसीबत का कारण बनता है।
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